व्याकरण क्या है?
किसी भाषा के नियम जो ध्वनियों, शब्दों, वाक्यों और अन्य तत्वों के साथ-साथ उनके संयोजन और व्याख्या को नियंत्रित करते हैं इसे व्याकरण कहा जाता है. व्याकरण किसी भी भाषा की प्रणाली है। ये भाषा के ऐसे नियम है है जो किसी भी सौंदर्य को चार चाँद लगा देते है.
क्या हमें भाषा सीखने के लिए व्याकरण का अध्ययन करने की आवश्यकता है? संक्षिप्त उत्तर है “नहीं”। दुनिया में बहुत से लोग अपनी मूल भाषा बोलते हैं, और इसे सीखने के लिए उन्होंने कभी व्याकरण नहीं सीखा. बच्चे “व्याकरण” शब्द जानने से पहले ही बोलना शुरू कर देते हैं। जिसे मातृभाषा भी कहा जाता है. जो स्वयंभू अपने परिवार से ही सीखी जाती है.
लेकिन अगर आप किसी दूसरी भाषा या विदेशी भाषा को सीखने के बारे में सोच रहे है तो आपको व्याकरण साइन की जरुरत है. इससे आप किसी अन्य भाषा अधिक तेज़ी से और अधिक कुशलता से सीखने में मदद कर सकता है।
हिन्दी व्याकरण किताब NCERT
अगर आप किसी कक्षा के छात्र है जो विविध भाषाओं के साथ अभ्यास कर रहे है तो आपको भाषाका व्याकरण सीखने की जरुरत है. यहाँ आपको हिंदी भाषा के व्याकरण की एक बुक दी है जो आप मदद करेगी. इस बुक में व्याकरण के सभी अंगो को उदहारण के साथ बताया गया है. जिससे आपकी भाषा पर पकड़ मजबूत बनेगी.
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हिन्दी व्याकरण किताब की विशेषता
- भाषा-व्याकरण एवं लिपि का परिचय
- वर्ण-विचार एवं आक्षरिक खंड
- शब्द-विचार (क)
- परिभाषा एवं प्रकार-
- (1) उत्पत्ति के आधार पर (तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी)
- (2) रचना के आधार पर
- (3) प्रयोग के आधार पर
- (4) अर्थ के आधार पर
- शब्द-विचार (ख)
- (1) विकारी संज्ञा, सर्वनाम, क्रिया, विशेषण
- (2) अविकारी क्रिया विशेषण, संबंध बोधक, समुच्चय बोधक, विस्मयादि बोधक
- पद-परिचय
- शब्द शक्तियाँ शब्द रूपांतरण-लिंग, वचन, कारक, काल, वाच्य
- संधि : अर्थ एवं प्रकार
- समास : अर्थ एवं प्रकार
- उपसर्ग, प्रत्यय (कृदन्त, तद्धित) वाक्य विचार अर्थ विचार (पर्याय, विलोम, वाक्यांश के लिए एक शब्द, समानार्थी) विराम चिह्न शुद्धीकरण (शब्द शुद्धि, वाक्य शुद्धि) मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ
- अलंकार :
- अर्थ एवं प्रकार (अनुप्रास, उपमा, श्लेष, यमक, रूपक, उत्प्रेक्षा उदाहरण तथा विरोधाभास)
- पत्र एवं कार्यालयी अभिलेखन संक्षिप्तीकरण एवं पल्लवन
- निबंध – Essay
- अपठित
- परिशिष्ट
हिंदी भाषा और व्याकरण
हिंदी व्याकरण हिंदी भाषा को शुद्ध रूप से लिखने और बोलने संबंधी नियमों की जानकारी देनेवाला शास्त्र है। किसी भी भाषा को जानने के लिए उसके व्याकरण को भी जानना बहुत आवश्यक होता है। हिंदी को विभिन्न ध्वनि, वर्ण, पद, पदांश, शब्द, शब्दांश, वाक्य, वाक्यांश आदि को विवेचना तथा उसके विभिन्न घटकों प्रकारों का वर्णन हिंदी व्याकरण में किया जाता है। हिंदी व्याकरण को मोटे तौर पर वर्ण-विचार, शब्द-विचार, वाक्य विचार आदि तीन वर्गों में विभाजित कर इनके विभिन्न पक्षों पर विचार किया जाता है।
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भाषा और बोली में क्या भेद है?
एक सीमित क्षेत्र में बोले जानेवाले भाषा के स्थानीय रूप को ‘बोली’ कहा जाता है जिसे ‘उप भाषा’ भी कहते हैं। कहा गया है कि ‘कोस-कोस पर पानी बदले, पाँच कोस पर बानी’। हर पाँच-सात मील पर बोली में बदलाव आ जाता है। भाषा का सीमित, अविकसित तथा आम बोलचाल वाला रूप बोली कहलाता है जिसमें साहित्य रचना नहीं होती तथा जिसका व्याकरण नहीं होता व शब्दकोश भी नहीं होता, जबकि भाषा विस्तृत क्षेत्र में बोली जाती है, उसका व्याकरण तथा शब्दकोश होता है तथा उसमें साहित्य लिखा जाता है। किसी बोली का संरक्षण तथा अन्य कारणों से यदि क्षेत्र विस्तृत होने लगता है तथा उसमें साहित्य लिखा जाने लगता है तो वह भाषा बनने लगती है तथा उसका व्याकरण निश्चित होने लगता है।
हिंदी की बोलियाँ
हिंदी केवल खड़ी बोली (मानक भाषा) का ही विकसित रूप नहीं है बल्कि जिसमें अन्य बोलियाँ भी समाहित हैं जिनमें खड़ी बोली भी शामिल है। ये निम्न प्रकार हैं-
- पूर्वी हिंदी जिसमें अवधी, बघेली तथा छत्तीसगढ़ी शामिल हैं।
- पश्चिमी हिंदी में खड़ी बोली, ब्रज, बाँगरू (हरियाणवी), बुन्देली तथा कन्नौजी शामिल हैं।
- बिहारी की प्रमुख बोलियाँ मगही, मैथिली तथा भोजपुरी हैं।
- राजस्थानी की मेवाड़ी, मारवाड़ी, मेवाती तथा हाड़ौती बोलियाँ शामिल हैं।
कुछ विद्वान मालवी, ढूंढाडी तथा बागडी को भी राजस्थानी की अलग बोलियाँ मानते है। - पहाड़ी की गढ़वाली, कुमाऊँनी तथा मंडियाली बोलियाँ हिंदी की बोलियाँ हैं।
इन बोलियों के मेल से बनी हिंदी को संविधान सभा ने 14 सितम्बर, 1949 को भारत की राजभाषा स्वीकार किया। विभिन्न बोलियों के मेल से बनी हिंदी की भाषाई विविधता के कारण ही हिंदी के क्षेत्रीय उच्चारण में विविधता पाई जाती है।
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